आपने लॉन्ग-टर्म के लिए निवेश किया हो और इस दौरान अगर बाज़ार में मंदी आ जाए तो क्या होगा?
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सिप (SIP) के माध्यम से म्यूचुअल फंड में लॉन्ग-टर्म का निवेश करने वाले निवेशकों को हर समय यह फ़िक्र होती रहती है कि इस दौरान अगर बाज़ार गिरने लगा तो क्या होगा। बाज़ार की टाइमिंग और उतार-चढ़ाव जैसी जोखिमों से कुछ हद तक बचाव के लिए सिप एक नायाब तरीका है।
आप रूपी-कॉस्ट-एवरेजिंग से बाज़ार के उतार-चढ़ाव से बच सकते हैं, इसके लिए म्यूचुअल फंड में नियमित निवेश सिप के माध्यम से करना होता है। इसमें आप एनएवी कम होने पर ज़्यादा यूनिटें खरीदते हैं और एनएवी ज़्यादा होने पर कम यूनिटें। इस दौरान अगर एनएवी ऊपर और नीचे दोनों ओर को चलती है तो लॉन्ग-टर्म में आपका प्रति यूनिट औसत मूल्य कम होता है। उदाहरण के लिए, अगर आप ₹1,000/- प्रति माह निवेश करते हैं, तो अगर एनएवी ₹10 होगी तो आपको 100 यूनिटें मिलेंगी और अगर एनएवी ₹5 हो जाती है तो आपको 200 यूनिटें मिलेंगी। अगर बाज़ार ऊपर और नीचे दोनों दिशाओं में चलता है तो लॉन्ग-टर्म में प्रति यूनिट औसत दर कम होगी जिससे आपके निवेश पर प्रतिफल की अस्थिरता भी कम करने में मदद मिलती है।
अगर आप एकमुश्त रकम निवेश करते हैं, तो निवेश के पूरे समय में यूनिटों की संख्या बदलेगी नहीं, लेकिन निवेश का मूल्य बाज़ार के उतार के साथ नीचे गिर सकता है। अगर आप अपने एकमुश्त निवेश को किसी इक्विटी फंड में लॉन्ग-टर्म के लिए रखते हैं (जैसे, 7-8 वर्षों तक), तो ऐसी अस्थायी फिसलन से आपके प्रतिफल पर असर नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि बाज़ार का रुख लंबे समय में आम तौर पर ऊपर की ओर ही रहता है। ज़्यादा संभावना इसी बात की है कि आपने जिस एनएवी से निवेश शुरू किया था, आखिर में आपको उससे कहीं ज़्यादा एनएवी मिले।